आचार्य श्री विद्यासागर महाराज मछली ठेकेदार रणजीत सिंह सिकरवार के त्याग और भक्ति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दीक्षा के बाद पहली बार भक्त के कहने पर नाव में सवार होकर नदी पार की। इस प्रसंग से राम और केवट की याद को पुनः ताजा हो गई।उत्तर प्रदेश के देवगढ़ तीर्थ क्षेत्र से मुंगावली की ओर बिहार करने के लिए आचार्य श्री ससंघ ढ़ीमरोली पहुंचे।यहां पर मछली ठेकेदार रणजीत सिंह सिकरवार आचार्य श्री और संघ को दर्शन कर इतना प्रभावित हुआ कि उसने भक्ति भाव से आचार्य श्री से नाव के जरिए नदी पार करने का आग्रह किया।आचार्य श्री से उसने नाव पर सफर करने पर आजीवन शाकाहार का संकल्प लेने और मछली पकड़ने का ठेका त्यागने की इच्छा जताई। सिकरवार ने कहा कि यदि वह उसे आशीर्वाद देंगे तो वह आजीवन शाकाहार का संकल्प लेगा।भक्त की भक्ति को देखते हुए आचार्य श्री विद्यासागर ने अपने संकल्प को शिथिल करते हुए ससंघ नाव पर सवार होकर नदी पार करने का निर्णय लेकर भक्त की भक्ति का सम्मान किया। उल्लेखनीय दिगंबर जैन साधु कभी भी नाव से नदी पार नहीं करते हैं। भक्त की भक्ति के सामने आखिरकार आचार्य विद्यासागर जी महाराज को भी पराजित होना ही पड़ा।