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व्यक्तित्व
07-Aug-2019

सुषमा स्वराज भाजपा की एक ऐसी हस्ती थीं जिन्होंने न सिर्फ एक प्रखर वक्ता के रूप में अपनी छवि बनाई, बल्कि उन्हें 'जन मंत्री' कहा जाता था. इतना ही नहीं वह जब विदेश मंत्री बनीं तो उन्होंने आम आदमी को विदेश मंत्रालय से जोड़ दिया. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने के बाद दिल्ली के AIIMS में निधन हो गया है.हरियाणा के अंबाला कैंट में सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी, 1953 को हुआ था. उनके पिता हरदेव शर्मा आरएसएस से जुड़े थे और संगठन में उनकी बहुत अच्छी छवि थी. उन्होंने अंबाला छावनी के SSD कॉलेज से BA की पढ़ाई की. सुषमा एक होनहार छात्रा थीं और अंबाला छावनी के एसडी कॉलेज से उन्हें सर्वश्रेष्ठ छात्रा का पुरस्कार मिला था. इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय के कानून विभाग से LLB की डिग्री लीऔर 1973 से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की. सुषमा स्वराज पढ़ाई के साथ एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी में बहुत आगे रहीं. वह शास्त्रीय संगीत के अलावा ललित कला और नाटक देखने आदि में काफी रुचि लेती थीं उनका राजनीतिक करियर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के साथ शुरू हुआ सुषमा का दिल्ली से काफी गहरा नाता था. अटल बिहारी वाजयेपी जब केंद्र की सत्ता में आसीन थे, उस वक्त सुषमा स्वराज दक्षिणी दिल्ली से सांसद चुनी गईं और केंद्रीय मंत्री का पद संभाला. केंद्रीय मंत्री का पद और सांसद कार्यभार संभालने के दौरान सुषमा ने दिल्ली की नब्ज को टटोलना शुरू किया और 1998 में दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. सुषमा पहली बार दिल्ली के रास्ते लोकसभा पहुंची थीं. पार्टी ने उन्हें 1996 के लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल को पराजित किया था. उन्हें 13 दिनों की वाजपेयी सरकार में सूचना व प्रसारण मंत्री बनाया गया था.मार्च 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने फिर से उन्हें दक्षिणी दिल्ली सीट से मैदान में उतारा. वह कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन को हराकर दूसरी बार लोकसभा पहुंचीं और उन्हें एक बार फिर से सूचना व प्रसारण मंत्री की जिम्मेदारी दी गई. इसके साथ ही उन्हें दूरसंचार विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. इसी साल उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया गया. दक्षिणी दिल्ली से दो बार सांसद रहने और सीएम की कुर्सी संभालने के बाद सुषमा स्वराज के नेतृत्व में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा. हालांकि बीजेपी दोबारा सत्ता में आने में नाकामयाब ही रही.उन्होंने विदिशा लोकसभा सीट से 2009 में पहली बार जीत हासिल की थी, जिसके बाद क्षेत्र की जनता ने 2014 में एक बार फिर उन्हें चुना था.वहीं इस बार स्वास्थ्य खराब होने के चलते उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी. ऐसे में उनके निधन की खबर के बाद पूरे राज्य में शोक की लहर है.