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व्यक्तित्व
11-Oct-2020

महात्मा गांधी का व्यक्तित्व सारी दुनिया के लिए अचंभित करने वाला है भारत में गांधी जी को मुस्लिमों का हिमायती होने और हिंदू विरोधी होने का आरोप, स्वतंत्रता के बाद से लगाया जा रहा है। सही मायने में, महात्मा गांधी ना तो हिंदुओं के हिमायती थे, और ना ही मुसलमानों के। गांधी तो कट्टर सनातनी हिंदू थे। राम का उनके जीवन पर बड़ा असर था। भागवत गीता उनका मार्गदर्शन करती थी। भागवत गीता को महत्मा गांधी अपनी दिव्य माता मानते थे । भागवत गीता के दूसरे अध्याय के स्थितप्रज्ञ के श्लोक वह अपनी दैनिक प्रार्थना में रोज पढ़ते थे। भागवत गीता के श्लोकों को वह अपने कर्म का आधार मानते थे। महात्मा गांधी ने सार्वजनिक स्तर पर कई बार कहा उनके जीवन का लक्ष्य स्थितप्रज्ञ जैसा बनाना है । गांधी जी शुद्ध वैष्णव धर्म का पालन करते थे। उनका प्रिय भजन ‘‘वैष्णव जन तो तेने कहिए ’’ था । उन्होंने अपने पूरे जीवन में अहिंसा व्रत का पालन किया। उन्होने एक संयमी की तरह अंतिम समय तक अपना जीवन जिया । मुसलमान उनको काफिर कहते थे, हिंदू उनको मुस्लिम समर्थक मानते थे। महात्मा गांधी के बेटे हरलाल ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था। मुस्लिमों ने उनसे भी इस्लाम धर्म कबूल करने की बात कहते हुए कहा था, इस्लाम दुनिया का सबसे अच्छा धर्म है। गांधी जी ने पत्र लिखकर मौलवियों और अखबार में लेख लिखते हुए कहा कि एक युवक वेश्या गमन करता है। अनेक बार धर्म परिवर्तन करता है । क्या मुसलमान होने से वह पवित्र हो जाता है। उन्होने अपने सनातनी धर्म को ही सर्वोच्च मानते हुए मोलानाओं को तगड़ा जबाब दिया था। वर्तमान संदर्भ में भारतीय राजनीति में यही चरित्र देखने को मिल रहा है । एक राजनीतिक दल से दूसरे राजनीतिक दल में जाने के साथ ही उसके सारे पाप, घोटाले, धुल जाते हैं। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि 1946 में बंगाल के नोआखाली में हिंदू मुस्लिम दंगे भड़के थे । 22 लाख की आबादी वाले इस शहर में 82 फीसदी मुसलमान थे । यहां के 22 पुलिस स्टेशन में 21 पुलिस स्टेशन के इंचार्ज मुसलमान थे। यहां पर बड़े पैमाने पर हिंदुओं का कत्ल हुआ था । गांधी जी जब वहां पहुंचे, तब मुसलमान उनके रास्ते में मैल डाल देते थे। उन्हें रामधुन नहीं गाने देते थे । गांधीजी के लिए बुड्ढे जैसे अपशब्दों का उपयोग कर भगाने का प्रयत्न किया । लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो पाए। गांधी जी दंगे रुकवा कर ही वहां से वापस लौटे। भारत- पाकिस्तान विभाजन के दौरान जब सारे देश में दंगे भड़काये जा रहे थे । उस समय गांधी बिना किसी भेदभाव के दंगों को रोकने के लिए यहां से वहां भाग रहे थे। उन्होंने जीवन भर हिंदू और मुसलमानों के बीच फैली हिंसा का विरोध किया । वह केवल अंहिसा और मानवता के पक्षधर थे। 13 जनवरी 1948 को जब गांधी आमरण अनशन पर बैठे। उस समय उनके दिमाग में भारत और पाकिस्तान में हिंदू मुस्लिमों के बीच चल रहे दंगे को रोकना था। दंगे रूकवाने के लिए गंाधी जी दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षो के संपर्क में थे। गांधी जी की लॉर्ड माउंटबेटन से भी बात हुई । माउंटबेटन ने विभाजन प्रस्ताव के अनुसार 55 करोड़ रुपए पाकिस्तान सरकार को नहीं देने पर इसे भारत सरकार की बेईमानी करार दिया। गांधीजी नहीं चाहते थे, कि भारत सरकार पर इस तरह का कोई आरोप लगे, वहीं विभाजन के बाद भारत तथा पाकिस्तान में हिंदू और मुसलमानों के बीच बड़े पैमाने पर मारकाट हो रही थी। भारत से बड़ी संख्या में मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे । वहीं पाकिस्तान में हिंदुओं की बहन बेटियों के साथ इज्जत लूटने की कई घटनाएं सामने आई थी । दोनों ही धर्म के लोगों में नफरत की जो आग लगी हुई थी, गांधीजी उसको मिटाना चाहते थे। वह पाकिस्तान जाकर वहां भी शांति स्थापित करने के लिए जिन्ना से भी बात कर रहे थे । 9 फरवरी 1948 को उनका पाकिस्तान जाने का कार्यक्रम भी तय था। पाकिस्तान में मुसलमानों द्वारा जो हिंदुओं पर अत्याचार किए जा रहे थे । जबरदस्ती हिंदुओं को बेदखल किया जा रहा था । उस संबंध में वह शांति स्थापित करने के लिए भारत में आमरण अनशन पर बैठे। उनका कहना था कि पाकिस्तान का 55 करोड़ रूपए भारत सरकार अदा कर दें। जिससे भारत और पाकिस्तान में शांति स्थापित हो, और अंग्रेजों को आग में घी डालने का कोई मौका नहीं मिले। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय राजनीति में हिंदू मुसलमानों के नाम पर जो दंगे हुए उसके बाद से भारत में भी लगातार धर्म आधारित राजनीति भारत में शनै शनै पनपती रही। उसके दुष्परिणाम हम आज देख रहे हैं। गांधी का अनशन खत्म हुआ, सरदार वल्लभभाई पटेल और पूरी कांग्रेस पार्टी, यहां तक कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में जो शांति समिति की बैठक हुई। उसमें हिंदू महासभा के लोग भी शामिल हुए थे। सभी ने महात्मा गांधी के अनशन को तुड़वाने के लिए 55 करोड़ रुपए ट्रांसफर करने की सहमति दी । 18 जनवरी 1948 को गांधी जी का अनशन मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के हाथों जूस पिलाकर समाप्त कराया गया। उस समय भी गांधीजी यह कहने से नहीं चूके, कि आपको लगता है कि मेरा अनशन बेमानी है, तो आप मेरी बात नहीं माने, मुझे मृत्यु स्वीकार है। किंतु मेरा जीवन बचाने के लिए आप अपने विचारों से कोई समझौता नहीं करें। गांधी सही मायने में एक अहिंसक संयमी थे उन्होने भगवत गीता के उपदेश कर्म के फल पर आधारित जीवन को जिया है । एक सच्चे सनातनी हिंदू रहकर उन्होंने अपने धर्म और सच्ची मानवता का अंतिम समय तक पालन किया । उन्हें हिंदू और मुसलमान दृष्टिकोण से जोड़कर बात करना पूरी तरह बेमानी है। सही मायने में, उस समय वह देश और दुनिया के लिए मानवता के सबसे बड़े महानायक थे। यही कारण है कि दुनिया भर के अधिकांश देशों में गांधी जी को शंतिदूत के रूप में पहचाना जाता है।