हाल ही में न्यायपालिका पर पड़ रहे दबाव को लेकर 600 वकीलों ने एक पत्र सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखा था. इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया देश मे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई है. जिन हरीश साल्वे ने न्यायपालिका पर दबाव होने की बात कही. उनका कितना प्रभाव न्यायपालिका और सरकार पर है. यह किसी से छुपा हुआ नहीं है. हरीश साल्वे का नाम पनामा पेपर सूची मे शामिल था. पिछले 10 वर्षों से केंद्र में भाजपा की सरकार है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. कॉलेजियम को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच लगातार तनातनी बनी हुई है. कॉलेजियम से जो नाम सरकार के पास नियुक्ति के लिए भेजे जाते हैं. वह सरकार को पसंद नहीं आते हैं. कॉलेजियम के भेजे गए वही नाम सरकार स्वीकार करती है. जो सरकार को पसंद होते हैं. यह सब को मालूम है. केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू और कॉलेजियम के बीच में कई बार टकराव बना. इसमें हमेशा जीत सरकार की हुई. सरकार और कॉलेजियम की तल्खी एक बार इतनी ज्यादा बढ़ गई. जिसके कारण सरकार को कानून मंत्री किरण रिजीजू को हटाना पड़ा.इसके बाद भी कॉलेजियम की अनुशंसा पर केंद्र सरकार वही किया जो उसे पसंद था. केंद्र सरकार का हस्तक्षेप न्यायपालिका में किस हद तक पहुंच गया है. इसकी चर्चा लगातार देश में होती रहती है. अब तो यह चर्चा जर्मनी अमेरिका तथा संयुक्त राष्ट्र संघ में भी होने लगी है. भारतीय न्यायपालिका के ऊपर यह बड़ा दबाव है. सेवा निवृत्ति के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को तुरंत महत्वपूर्ण पदों पर सरकार द्वारा नियुक्ति दी जा रही है. जिसके कारण न्यायपालिका पूरी तरह से सरकार की दबाव मे है.