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अंतर्राष्ट्रीय
10-Jan-2025

अमेरिका की तरह अब भारत की राजनीति को पूंजीपति नियंत्रित कर रहे हैं. लोकसभा चुनाव के पहले इंडिया गठबंधन बना.जिसमें देश की सभी विपक्षी पार्टियों शामिल हुई. विशेष रूप से विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय दल इंडिया गठबंधन में शामिल हुए. जब इंडिया गठबंधन बना थातब यह कयास लगाए जा रहे थेजल्द ही इंडिया गठबंधन अंतर विरोध के कारण टूट जाएगा. भारतीय जनता पार्टी को चिंता हुई. इंडिया गठबंधन से जल्द ही नीतीश कुमार बाहर हो गए. उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली.लोकसभा चुनाव के परिणाम ने भाजपा को चौंका दिया. कहां भारतीय जनता पार्टी 400 सीटें पार करने की बात कह रही थी. जब चुनाव परिणाम सामने आएतब भारतीय जनता पार्टी 240 सीटों पर सिमट कर रह गई. एनडीए के सहयोगी दलों के साथ केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी. इसके बाद सरकार और अडानी समूह ने इंडिया गठबंधन को गंभीरता से लिया. राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के राजनीतिक दल जिस तरह से अडानी समूह के पीछे पड़े हुए थे. उसके बाद सरकार और अडानी समूह ने मिलकर अपनी रणनीति को बदल दिया. क्षेत्रीय दलों को अडानी द्वारा आर्थिक मदद दी गई. जिसका परिणाम अब देखने को मिल रहा है. अडानी समूह ने सभी क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को अपने निशाने पर लिया. सबसे पहले ममता बेनर्जी को घेरा उसके बाद बिहार में लालू यादव को अपने निशाने पर लिया. समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव भी अडानी के निशाने पर आए. सभी की आर्थिक ज़रूरतें पूरी हुई. इन्होंने अडानी के मामले में चुप्पी साध ली. क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने खुलकर कांग्रेस के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया. ममता बेनर्जी खुद इंडिया गठबंधन का नेतृत्व मांगने लगी. इसका समर्थन लाल यादव ने कर दिया. अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ अपनी दूरियां बनाना शुरू कर दी. एक तरह से यह सारे क्षेत्रीय दल अडानी के कारण अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस से दूर और केंद्र सरकार के नजदीक आते चले गए. लोकसभा के शीतकालीन सत्र में राहुल गांधी अडानी के खिलाफ काम रोको प्रस्ताव पर बहस करने के लिए अड़े रहे. इंडिया गठबंधन के सभी सहयोगी दलों ने इस मामले में अपना पल्ला झाड़ लिया. उसके बाद से ही यह खबर आ रही थी. केंद्र सरकार और अडानी समूह के बीच जो रणनीति बनी थी उसमें क्षेत्रीय दल फंस गए हैं. केंद्र सरकार के इशारे पर अडानी समूह द्वारा क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के साथ संपर्क बनाकर उन्हें बड़ी आर्थिक सहायता दी गई. कांग्रेस और राहुल गांधी के खिलाफ इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को खड़ा कर दिया. जिसके कारण किसी भी काम रोको प्रस्ताव पर संसद में चर्चा नहीं हुई. इसका फायदा सरकार को हुआ.संसद के शीतकालीन सत्र में इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों ने अडानी समूह के मामले में कांग्रेस के साथ अपनी दूरियां बना ली. कांग्रेस संसद में अलग-थलग पड़ गई. इसका फायदा अडानी समूह को हुआ और केंद्र सरकार को भी हुआ. हाल ही में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी इस चुनाव में आमने सामने हैं. भारतीय जनता पार्टी को इस बार बड़ी आशा है दिल्ली में उनकी जीत होगी. इंडिया गठबंधन के सहयोगी के रूप में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था. अब दोनों के आमने-सामने चुनाव लड़ने से इसका फायदादिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा को होगा. रही सही कसर महाराष्ट्र से आ रही है. उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना और शरद पवार की राकापा अडानी समूह और भाजपा के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है. पिछले कुछ दिनों से शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने भाजपा सरकार के प्रति नरम रुख अख्तियार कर लिया है. महाराष्ट्र की भाजपा सरकार और अडानी समूह के बीच धारावी की जमीन को लेकर जो समझौता हुआ था.उस पर उद्धव ठाकरे ने लड़ने की बात कही थी लेकिन अब चुप्पी साध ली है. राहुल गांधी द्वारा अडानी का विरोध करने पर शरद पवार भी अब कांग्रेस का विरोध करते हुए केंद्र सरकार के पाले में बैठ गए हैं. जल्द ही सुप्रिया सुले के केंद्र में मंत्री बनने की बात सामने आ रही है. इस सारी राजनीतिक जोड़तोड़ से यह स्पष्ट है क्षेत्रीय दलों की जलेबीअडानी का सीरा पी गई है. लोकतंत्र खतरे में है अब यह लड़ाई कांग्रेस के मतथे छोड़ दी है. केंद्र की सरकार को अब कोई खतरा नहीं है. बिहार में नितीश बाबू के तेवर भी ठंडे पड़ गए हैं. आंध्र प्रदेश को प्रधानमंत्री ने 2 लाख करोड़ का नया तोहफा दे दिया है. इसकी घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंध्र प्रदेश में जाकर मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के साथ कर दी है. वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है. भारत की राजनीति पूंजीपतियों द्वारा संचालित हो रही है. अब भारत भी अमेरिका की तरह पूंजीपतियों की बताई राह पर चलने के लिए विवश है. चुनाव के लिए धन चाहिए और धन पूंजीपति ही दे सकते हैं.अब तो आम जनता के वोट की भी जरूरत नहीं है. कितना भी टैक्स लगाओ कितनी भी महंगाई बढ़ती रहे कितनी भी बेरोजगारी हो. सरकार तो भाजपा की ही बनेगी. 80 करोड लोगों को फ्री में अनाज मिल रहा है. चुनाव के समय वोटरों को नोट भी मिल जाते हैं. इससे अच्छा और क्या हो सकता है.